● गर्भवती महिलाओं के लिए गम का सबब बन रहा कोरोना वायरस, निजी अस्पतालों में नहीं हो रहा उपचार ● महामारी के खौफ से ढेरों समाजसेवी हुए रूपोश, कहाँ से आएंगे समाज के तीमारदार?
■ रिपोर्ट: जुनैद अर्सलान, (8887736022) ब्यूरो चीफ, "कुशल व्यवहार" (निष्पक्ष हिन्दी साप्ताहिक)
◆ केवी न्यूज़ नेटवर्क, मऊ, 4 मई 2021। जनपद भर में कोरोना वायरस के बढ़ते दायरे से जहां लोगों में भय एवं संशय का माहौल है वहीं नान-कोविड मरीजों के इलाज के अमल के दौरान उनके संबंधियों को कड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा मुश्किल तो गर्भवती महिलाओं को हो रही है जिन्हें निजी स्वास्थ्य केंद्र केवल उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने की कठिन शर्तों के साथ डिलीवरी के लिए भर्ती ले रहे हैं, लेकिन इसी दौरान जब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव बताई जाती है तो उन्हें जिले के ही किसी दूसरे कोविड अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। लगभग यही परिस्थिति बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ की भी बताई गई है जहां गर्भवती महिलाओं की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें स्थानीय L-2 या L-3 अस्पताल के लिए रिफर कर दिया जाता है। याद रहे कि जिले के तीन बड़े प्राइवेट अस्पतालों को हॉस्पिटल में तब्दील कर दिए जाने के बाद से ही लोगों को इस तरह की भयावह स्थिति का सामना है। प्राइवेट स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर मरीजों के पॉजिटिव निकलने के बाद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है और इस प्राणघातक संक्रमण के खौफ और दहशत के चलते अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी भी कोरोना मरीजों को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं रहते।
वहीं दूसरी ओर, इस महामारी की दूसरी लहर और उसके मैदान-ए अमल में विस्तार से जिले के अक्सर समाजसेवी भी अब लोगों से फासले बढ़ाने लगे लगे हैं। विगत वर्ष इससे पूर्व की लहर में जहां उन्होंने जबरदस्त साहस और आत्मविश्वास का सबूत दे कर उदारवादी व पुनीत कार्य अंजाम दिए थे और बढ़ चढ़कर गरीबों व असहायों की मदद की थी वहीं परिस्थितियों की संगिनी के चलते इस साल शायद समाजसेवियों की हिम्मत जवाब देने लगी है। याद रहे कि जिला प्रशासन के द्वारा जारी रिपोर्ट में जिले में इन दिनों हर रोज तकरीबन 150 से अधिक लोग कोरोना के शिकंजे की पकड़ में बताए जाते हैं। इस संक्रमण पर काबू पाने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने विगत दिनों सप्ताह के 3 दिन यानी शनिवार, रविवार और सोमवार के दिन लाकडाउन लगाने का आदेश जारी किया था लेकिन संगीन हालात के सबब अब लॉकडाउन में मज़ीद दो दिन का विस्तार कर दिया गया है जिससे समाज के कमजोर और असहाय तबके के चेहरों पर फिक्र, अंदेशे और भय एवं संशय के आसार नजर आने लगे हैं क्योंकि वह जिन आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं, उसमें समाजसेवियों के सिवा दूसरा कोई उनका पुरसानहाल नजर नहीं आ रहा। लेकिन सामाजिक नेता भी अब इंफेक्शन के बढ़ते खतरे के पेशेनज़र होम क्वारण्टीन और खुद को लोगों से अलग करके सोशल डिस्टनसिंग का पालन करने लगे हैं। गौरतलब है कि पिछले साल लॉकडाउन में शहर की कुछ सामाजिक संस्थाओं ने लोगों की सहायता और उनमें इस खतरनाक संक्रमण के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मास्क और सेनाटाइज़र के साथ ही मुफ्त में राशन और अन्य आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराई थी लेकिन इस बार 3 दिन के लॉकडाउन में जरूरतमंदों की मदद के लिए अक्सर समाजसेवी सोशल मीडिया के अलावा जमीनी सतह पर मैदान-ए-अमल में सक्रिय नजर नहीं आए।
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