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इंसाफ हो तो ऐसा...!!!

आरोपी एक पन्द्रह साल का बालक था जिसे पुलिस ने एक स्टोर से चोरी के इल्ज़ाम में अपने शिकंजे में ले लिया था। गिरफ्तारी के बाद उसने गार्ड की पकड़ से भागने की भरपूर कोशिश की थी जिस दौरान स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया था। न्यायाधीश ने फर्द-ए-जुर्म सुनकर लड़के से पूछा, "तुमने वाक़ई कुछ चुराया था?" "ब्रेड और पनीर का पैकेट।" लड़के ने हामी भरते हुए जवाब दिया।  "आखिर क्यों?" "मुझे सख्त ज़रूरत थी।" लड़के ने स्पष्ट उत्तर दिया। "तो खरीद लेते...?" "मेरे पास पैसे नहीं थे।" "घर वालों से ले लेते?" "घर पर सिर्फ बीमार और बेरोज़गार माँ है, और ब्रेड और पनीर मैंने उसी के लिए चुराई थी।" "तुम कुछ काम नहीं करते?" "करता था, एक कार वाश में। माँ की देखभाल के लिए एक दिन ग़ैरहाज़िर रहने पर मुझे काम से बेदखल कर दिया गया।" "तुम किसी की मदद मांग लेते?" "सुबह से मदद ही तो मांग रहा था, किसी का दिल नहीं पसीजा।" जिरह समाप्त हुई और न्यायाधीश ने फैसला सुनाना शुरू कर दिया। "चोरी और खासतौर से रोटी की चोरी बहुत भयान

● गर्भवती महिलाओं के लिए गम का सबब बन रहा कोरोना वायरस, निजी अस्पतालों में नहीं हो रहा उपचार ● महामारी के खौफ से ढेरों समाजसेवी हुए रूपोश, कहाँ से आएंगे समाज के तीमारदार?

■ रिपोर्ट: जुनैद अर्सलान, (8887736022 ) ब्यूरो चीफ, "कुशल व्यवहार" (निष्पक्ष हिन्दी साप्ताहिक) ◆ केवी न्यूज़ नेटवर्क, मऊ, 4 मई 2021। जनपद भर में कोरोना वायरस के बढ़ते दायरे से जहां लोगों में भय एवं संशय का माहौल है वहीं नान-कोविड मरीजों के इलाज के अमल के दौरान उनके संबंधियों को कड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा मुश्किल तो गर्भवती महिलाओं को हो रही है जिन्हें निजी स्वास्थ्य केंद्र केवल उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने की कठिन शर्तों के साथ डिलीवरी के लिए भर्ती ले रहे हैं, लेकिन इसी दौरान जब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव बताई जाती है तो उन्हें जिले के ही किसी दूसरे कोविड अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। लगभग यही परिस्थिति बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ की भी बताई गई है जहां गर्भवती महिलाओं की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें स्थानीय L-2 या L-3 अस्पताल के लिए रिफर कर दिया जाता है। याद रहे कि जिले के तीन बड़े प्राइवेट अस्पतालों को हॉस्पिटल में तब्दील कर दिए जाने के बाद से ही लोगों को इस तरह की भयावह स्थिति का सामना है। प्राइवेट स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर मरीजों के प

क्या ज़मीन पर हवा बदल रही है??

एक सुबह जब आँख बेदार हुई, मेरी निगाह मोबाइल स्क्रीन के नोटिफिकेशन कॉलम पर जा थमी। नज़रो के इस जमाव ने मुझे बुरी तरह विचलित और परेशान कर दिया था। परेशानी का सबब और कुछ न रहकर अपने शहर के वायु प्रदूषण का वह माप था जिसे 162 दर्शाया गया था। खतरनाक हद तक बढ़ रहे हवा के इस प्रदूषण के स्तर को मैंने एक बार नहीं बल्कि अनेक बार देखा था। हवा में फैले गर्दोगुबार और विषैले तत्वों की भयावहता से दुनियाभर में हर रोज़ जाने कितने लोग मौत के घाट उतर जाते हैं।  वास्तव में, बेचैनी इंसानी प्रवृत्ति और फितरत का हिस्सा है। बेचैनी जब तक न हो आदमी न तो खतरों को भांप सकता है, न माप सकता है। कहने का मतलब ये कि बेचैनी इंसान के लिए हर बार घातक सिद्ध नहीं होती बल्कि कई बार जागरूकता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। पहले हम समझते रहे कि चलो! हवा में फैले प्रदूषण के इस स्तर अर्थात Air Quality Index (AQI) से शहर की सरहद से दूर स्थित स्थानों के पर्यावरण विशेषज्ञ निपट लेंगे और अपनी बुलन्दतरीन सोच से कोई न कोई कदम उठाकर वायु प्रदूषण को किसी न किसी तरह कदम पीछे लेने पर मजबूर कर देंगे। लेकिन यह सब कुछ मन का बहलावा और